बुधवार, 29 दिसंबर 2010

माँ

सृजन की माला का मनका बनाकर ...कि नारी तन और जीवन देकर कृतार्थ कर दिया ओ माँ तुने ... माँ तुझे सलाम ..

सोमवार, 29 नवंबर 2010

शायद ..

बीती रात कोई मर गया शायद
उजाला बस्ती में कफ़न का कर गया शायद ॥

मौत उसके पीछे न पड़ी थी
बेचारा जिन्दगी से डर गया शायद ॥

नुमाइश को यूँ तो एक जिस्म रखा था
वो भी सुबह तक सड गया शायद ॥

थक कर जिन्दगी के रेलम पेले में
सफ़ेद काफ्दो में सवंर गया शायद ॥

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

बेहतर है ..

जिस तट पर प्यास बुझाने से , अपमान प्यास का होता हो ॥
उस तट पर प्यास बुझाने से , प्यासा मर जाना बेहतर है॥

जब आंधी नाव डूबा देने को
अपनी जिद पे अड़ जाये ,
हर एक लहर नागिन बन के
डसने को फन फैलाये ।

ऐसे में भीख किनारों की मांगना धार से ठीक नहीं,
पागल तुफानो को बढकर आवाज़ लगाना बेहतर है ॥

कांटे तो अपनी आदत के
अनुसार, नुकीले होते है
कुछ फूल मगर कांटो से भी,
जादा जहरीले होते है ॥

जिसको माली आँखे मीचे मधु के बदले विष से सींचे ॥
ऐसी डाली पे खिलने से पहले मुरझना बेहतर है ॥

जो दिया उजाला दे न सके
तम के चरणों का दास रहे
अंधियारी रातो में सोये
दिन में सूरज के पास रहे ।

जो केवल धुंआ उगलता हो, सूरज पे कालिख मलता हो ॥
ऐसे दीपक का जलने से पहले , बुझ जाना बेहतर है ॥

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

अश्लील है तुम्हारा पौरुष

पहले वे ..लम्बे चोगो पर सफ़ेद गोल टोपी ॥
पहने आये थे
और
मेरे चहरे पर तेजाब फेककर
मुझे बुर्के में बांध कर चले गए

संस्कृति के रखवाले बन कर आज फिर आये है ॥
एक हाथ में लोहे क़ि सलाखे
और दुसरे में हंटर लेकर

उन्हें शिकायत है ......
औरत होकर मैं
प्यार कैसे कर सकती हूँ ?
सपने कैसे देख सकती हूँ?
किसी को फूल कैसे दे सकती हूँ?

मैंने किसी को फूल दिया
---उन्होंने फूल जैसी मेरी देह दाग दी
मैंने उड़ने के सपने देखे
--उन्होंने मेरे सुनहरे पर तराश दिए
मैंने प्यार करने का दुस्साहस किया
--उन्होंने मुझे वैश्या बना दिया

वे ये सब करते रहे
और मैंने डरती रही , सहती रही ...
---अकेली हूँ न ?

कोई तो आये मेरे साथ
मैं इन हत्यारों को --
तालिब और मुहजिदो को
शिव और राम के सैनिको को
मुहब्बत का गुलाब देना चाहती हूँ॥
बताना चाहती हूँ इन्हें

" न मैं अश्लील हूँ , न मेरी देह ,
मेरी नग्नता भी अश्लील नहीं है ॥
व्ही तो तुम्हे जन्मती है ॥
अश्लील है तुम्हारा पौरुष
--औरत को सह नहीं पाता
अश्लील है तुम्हारी संस्कृति
पालती है तुम से विकृतियों को"

"अश्लील है वे सब रीतिया
जो मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद करती है
अश्लील है वे सब किताबे
जो औरत को गुलाम बनती है
और मर्द को मालिक
अश्लील है तुम्हारी ये दुनिया
इसमें प्यार वर्जित है
और सपने निषेद "

वे फिर फिर आते रहेंगे
--पोशाखे बदल कर
--हथियार बदल कर
करते रहेंगे मुझपर ज्यातती
पहले मुझे निवस्त्र करेंगे
और फिर
वस्त्र दान का पुण्य लूटेंगे

वे युगों से यही करते आये है
--फिर फिर यही करेंगे
जब जब मुझे अकेली पाएंगे ॥

सोमवार, 2 अगस्त 2010

गर हिम्मत हो ....

इस ज़माने की अक्सर तल्खियो ने मुझे सिखाया है
क़ि गर हिम्मत हो तो ज़हर भी है एक चीज खाने की ...

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

IN THE NAME OF LOVE ..

"Love is not about dominating the other, says Osho..if you try to curb its freedom or keep it under control, you only enp up killing it"

Love brings freedom. and a love that does not brings freedom is not Love. Love is not domination. How can you dominate someone you love? How can you make him / her dependent , and still be loving ? but that's what goes on happening in the world in the name of Love---something else --a lust to power, to dominate the other. Naturally independence cannot be allowed . Every effort is made that the other should be a carbon copy of you. You are afraid of the freedom of other , because freedom is not controllable , and freedom is not predicatable. So all , so called love tries in every way to destroy freedom..and the moment freedom destroyed ..LOVE DIES..
Love is very fragile, just like a rose flower. You have to let it dance in the rain, in the wind , in the sun , Love is like a Bird on the wing, having the whole sky as its freedom. You can catch hold of the bird , you can put it in a beautiful golden cage , and it seems it is the same bird that was flying in freedom and had the whole sky to itself. It only appears to be the same bird ..It is not killed it ..You have cut its wings , you have taken away its sky. and the birds dont bother about your gold ...However precious my be your cage, it is imprisonment . And that's what we are doing with our Love: we create golden cages, We are afraid because sky is Vast ..The fear is that the Bird may not return ...To keep it under your control it has be imprisioned ..That's how love become marriage..
Love is a bird on the wing; marriage is bird in a golden cage..And certainly the bird can never forgive you.

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

तुम्हे पाने को ..


मैं घर से निकल आई थी ।
तुम्हे पाने को,
मैंने धरम /जाति की हर दीवार गिराई थी।
तुम्हे पाने को ,
अपने पिता से आँख मिलायी थी -
भाई से जबान लड़ाई थी -
तुम्हे पाने को ॥

माँ ने बहुत बार समझाई हर बात मुझे ,
पिता ने भी दिया अपने वात्सल्य का वास्ता ,
मैंने मुड़कर नहीं देखा ......इतना विश्वास था तुमपर ॥
मैं अपना इतिहास जला आई ,
तुम्हे पाने को...

तुमने मुझे नया नाम दिया -
मैंने झुक कर स्वीकार किया,
तुमने मेरा स्पर्श किया -
मैंने आत्मीयता से अंगीकार किया ,
वेसे ये शब्द उतने ही निरर्थक थे ,
जितना मेरा जला हुआ अस्तित्व ॥
मैंने प्रतिकार नहीं किया था ,
तुम जैसे भी थे , जो भी थे -
बेशर्त मेरे प्रेमपात्र थे ...
मैं पवित्रता की हर शाख तोडती चली आई ,
तुम्हे पाने को ॥

हो गई सराबोर -तुम्हारे कपटी प्रेम की काली छाया में -
और सो गयी थी ,थक कर चकनाचूर

आँख खुली तो , तुम थे खड़े एक भीड़ में -
जो आई थी मुझ पर "हिजाब" के नाम पर
कफ़न डालने ॥

तुम्हारी आँखों में देखा मैंने झांक कर -
धरम/जाति की बड़ी ऊँची दीवार बना डाली थी तुमने ॥
बस एक ही रात में ???? कैसे संपन्न किया?
मैं तो तुम्हारे प्रेम की चादर में लिपटी ॥
तुम्हे अपना संरक्षक जान कर बेधड़क ही सोयी थी .....
तुम कब उठ कर चले गए ? दीवार बनाने ?
मैं देखती रह गयी -
तुमने मुझे जिंदा कब्र में गाड दिया-

एक बार फिर
सब कुछ जलाना होगा -
मुझे
खुद को पाने के लिए -
उम्र भर उठाना होगा तुम जैसे कायर से मोहब्बत करने की अकथित पीड़ा का भार मुझे ॥
खुद के किये को भुलाने के लिए ..



बुधवार, 20 जनवरी 2010

असह पीड़ा ....

कैसे कैसे मक़ाम आते है इस जिंदगी में ..वाकई हम किसी के गुलाम है वो जैसे चलाता है हम वैसे ही चलते है ...हम क्या चाहते है यही समझ नहीं आता....किस किस की परवाह करे ? किस किस के हाथ जोड़े की बस अब हो गया जिंदगी मिली है तो कम से कम जीने तो दो .....कहने को बहुत कुछ कहा जाता है पर उन बातो को जिंदगी में अपनाना बहुत कष्टमय होता है!!! कोई कितनी हिम्मत करे ..कब तक सोचे की सब ठीक हो जायेगा सब ठीक हो जायेगा पर कब ? कब आता है वो समय इंसान की जिंदगी में ? मर चुके है फिर भी जी रहे है क्यों? जो हम करना चाहते है वो हो नहीं पता और जो होता है वो पसंद नहीं आता ....कहना है बहुत कुछ पर कहा किस से जाए ? मुक्त गगन में उड़ने के ख्वाब है मेरे पर जैसे ही एक पंख उगता है कोई न कोई उसे अपनी सजावट के लिए काट लेता है ...अपनी अपनी ज़रूरते पूरा करने के लिए लोग जुड़ जाते है , और बस काम पूरा होते ही उड़ जाते है ? क्यों ? कभी कभी लगता है वो इश्वर है ही नहीं उस पर इतना विश्वास , इतनी श्रधा सब बेकार है मेरी ...जब वो है तो मैं क्यों कष्ट में हूँ? ................................वो ही मिलाता है एक जिंदगी को जिंदगी से ...वो ही सिखाता है मोहब्बत सभी से .....कर दे देता है एक रोज़ निराश उसी जिंदगी को जिंदगी से ,........और फिर जिंदगी मौत सिर्फ मौत की खवाहिश करती है .........कभी कभी सोचती हूँ मैं क्यों बनाता है इश्वर नयी जिंदगिया , जब हर जिंदगी मौत में बदल जाती है ............कब तक उमीद करू तेरी ? मुझे किनारा चाहिए अब .....अब मंजूर नहीं है तेरी गुलामी मुझे ......मुझे मेरी पहचान चाहिए .......अगर तुने मुझे सिर्फ उपयोग की वस्तु बनाया है तो क्यों मुझे बहन, बेटी , माँ और प्रेमिका बनाया है ? क्यों मुझे नारी शक्ति होने का अभिमान कराया है ? मुझे ये सोने का पिंजरा जरा नहीं भाता ...मुझे झूठे प्रलोभन नहीं भाते .......मुझे मिथ्या प्रेम नहीं भाता .....सृष्टि की सर्वोपरि रचना होने का मान चाहिए मुझे.....और अगर तेरे बस में नहीं है वो तो मत बना नयी जिंदगिया क्यूंकि यहाँ मुझे टीशु पेपर की तरह उपयोग किया जाता है ...... जैसे उसे हाथ पोछने के बाद फेक दिया जाता है मेरा भी वैसा ही हाल है , कुछ लोग फेक चुके है और कुछ लोग फेकने की तैयारी में है .......मैं आज भी अपनी हद में जी रही हूँ पर अब ये पीड़ा असह हो गयी है , मुझे उपयोग की वस्तु मानने वाले अगर खुश है तो या मेरा अपमान भी है और मेरे साथ अन्याय भी ......जिस दिन बिखर गयी सर्वनाश होगा .....मेरे जिस आँचल से मैं हवा झल सकती हूँ उसी हवा में बिना पंख उड़ सकती हूँ .........जिस पानी के लिए घंटो लाइन में खड़ी हो सकती हूँ ....उसी पानी की सी शक्ति है मेरी ....जिसकी बूंद बूंद जीवन है और रूद्र रूप सुनामी ........

बुधवार, 6 जनवरी 2010

वो ...


किसी अजनबी को मेरा लिखा सुना रहा था वो ...

बिखरे हुए ख्वाबो के पुर्जे उड़ा रहा था वो ....

उमर भर पिसता रहा रिश्तो की चक्की मे,

बाकि बचे रिश्तो से दामन छूडा रहा था वो .......

अपनी जिद तो वो पूरी न कर सका ...

रूठे हुए बच्चो को मना रहा था वो ...

सेहरा में खिले फूलो को बचाने के लिए ....

अपने अश्को से उसकी प्यास बुझा रहा था वो ...

उसकी यादो को कुछ इस तरह से भुला रहा था वो ,

अपने हाथो अपना लिखा मिटा रहा था वो ....

सिर्फ किरदार ही तो बदले थे उसने वरना ..

अपनी ही कहानी सुना रहा था वो ......