बुधवार, 20 जनवरी 2010

असह पीड़ा ....

कैसे कैसे मक़ाम आते है इस जिंदगी में ..वाकई हम किसी के गुलाम है वो जैसे चलाता है हम वैसे ही चलते है ...हम क्या चाहते है यही समझ नहीं आता....किस किस की परवाह करे ? किस किस के हाथ जोड़े की बस अब हो गया जिंदगी मिली है तो कम से कम जीने तो दो .....कहने को बहुत कुछ कहा जाता है पर उन बातो को जिंदगी में अपनाना बहुत कष्टमय होता है!!! कोई कितनी हिम्मत करे ..कब तक सोचे की सब ठीक हो जायेगा सब ठीक हो जायेगा पर कब ? कब आता है वो समय इंसान की जिंदगी में ? मर चुके है फिर भी जी रहे है क्यों? जो हम करना चाहते है वो हो नहीं पता और जो होता है वो पसंद नहीं आता ....कहना है बहुत कुछ पर कहा किस से जाए ? मुक्त गगन में उड़ने के ख्वाब है मेरे पर जैसे ही एक पंख उगता है कोई न कोई उसे अपनी सजावट के लिए काट लेता है ...अपनी अपनी ज़रूरते पूरा करने के लिए लोग जुड़ जाते है , और बस काम पूरा होते ही उड़ जाते है ? क्यों ? कभी कभी लगता है वो इश्वर है ही नहीं उस पर इतना विश्वास , इतनी श्रधा सब बेकार है मेरी ...जब वो है तो मैं क्यों कष्ट में हूँ? ................................वो ही मिलाता है एक जिंदगी को जिंदगी से ...वो ही सिखाता है मोहब्बत सभी से .....कर दे देता है एक रोज़ निराश उसी जिंदगी को जिंदगी से ,........और फिर जिंदगी मौत सिर्फ मौत की खवाहिश करती है .........कभी कभी सोचती हूँ मैं क्यों बनाता है इश्वर नयी जिंदगिया , जब हर जिंदगी मौत में बदल जाती है ............कब तक उमीद करू तेरी ? मुझे किनारा चाहिए अब .....अब मंजूर नहीं है तेरी गुलामी मुझे ......मुझे मेरी पहचान चाहिए .......अगर तुने मुझे सिर्फ उपयोग की वस्तु बनाया है तो क्यों मुझे बहन, बेटी , माँ और प्रेमिका बनाया है ? क्यों मुझे नारी शक्ति होने का अभिमान कराया है ? मुझे ये सोने का पिंजरा जरा नहीं भाता ...मुझे झूठे प्रलोभन नहीं भाते .......मुझे मिथ्या प्रेम नहीं भाता .....सृष्टि की सर्वोपरि रचना होने का मान चाहिए मुझे.....और अगर तेरे बस में नहीं है वो तो मत बना नयी जिंदगिया क्यूंकि यहाँ मुझे टीशु पेपर की तरह उपयोग किया जाता है ...... जैसे उसे हाथ पोछने के बाद फेक दिया जाता है मेरा भी वैसा ही हाल है , कुछ लोग फेक चुके है और कुछ लोग फेकने की तैयारी में है .......मैं आज भी अपनी हद में जी रही हूँ पर अब ये पीड़ा असह हो गयी है , मुझे उपयोग की वस्तु मानने वाले अगर खुश है तो या मेरा अपमान भी है और मेरे साथ अन्याय भी ......जिस दिन बिखर गयी सर्वनाश होगा .....मेरे जिस आँचल से मैं हवा झल सकती हूँ उसी हवा में बिना पंख उड़ सकती हूँ .........जिस पानी के लिए घंटो लाइन में खड़ी हो सकती हूँ ....उसी पानी की सी शक्ति है मेरी ....जिसकी बूंद बूंद जीवन है और रूद्र रूप सुनामी ........

बुधवार, 6 जनवरी 2010

वो ...


किसी अजनबी को मेरा लिखा सुना रहा था वो ...

बिखरे हुए ख्वाबो के पुर्जे उड़ा रहा था वो ....

उमर भर पिसता रहा रिश्तो की चक्की मे,

बाकि बचे रिश्तो से दामन छूडा रहा था वो .......

अपनी जिद तो वो पूरी न कर सका ...

रूठे हुए बच्चो को मना रहा था वो ...

सेहरा में खिले फूलो को बचाने के लिए ....

अपने अश्को से उसकी प्यास बुझा रहा था वो ...

उसकी यादो को कुछ इस तरह से भुला रहा था वो ,

अपने हाथो अपना लिखा मिटा रहा था वो ....

सिर्फ किरदार ही तो बदले थे उसने वरना ..

अपनी ही कहानी सुना रहा था वो ......