सोमवार, 29 नवंबर 2010

शायद ..

बीती रात कोई मर गया शायद
उजाला बस्ती में कफ़न का कर गया शायद ॥

मौत उसके पीछे न पड़ी थी
बेचारा जिन्दगी से डर गया शायद ॥

नुमाइश को यूँ तो एक जिस्म रखा था
वो भी सुबह तक सड गया शायद ॥

थक कर जिन्दगी के रेलम पेले में
सफ़ेद काफ्दो में सवंर गया शायद ॥