मंगलवार, 11 सितंबर 2012

दिल तू क्यों रोता है ..




ये जो गहरे सन्नाटे है , वक़्त ने सबको बांटे है ..थोडा ग़म है सबका किस्सा ..थोड़ी धुप है सबका हिस्सा .., आँख तेरी बेकार ही नम है ...हर पल एक नया मौसम है।।।


शुक्रवार, 29 जून 2012

किसको ???

खुदा जब फेर ले नजरे
दुहाई दे तो किसको दे ....
अदालत हो गई बहरी
सुनाई  दे तो किसको दे .....
सुनो कानून है अँधा
दिखाई दे तो किसको दे ...
यहाँ मुजरिम ही मुंसिफ है ...
सफाई दे तो किसको दे।.....

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

नंगा राजा

कुछ सवाल हमेशा सवाल ही रहते है ...और कुछ रहस्य , रहस्य ही रह जाते है ...ऐसी ही एक कहानी है बड़े ही निर्दई राजा की , जिसके राज्य में बोलने की मनाही थी ,और सच बोलने की सजा तो मौत ही थी बस .....एक दिन वो राजा एक दरजी के पास गया और बोला मुझे ऐसी पोशाक बना के दो , जो सबसे अलग हो , बहुत ही हलकी हो , और दुनिया मे किसी और के पास न हो ...अन्यथा तुम्हे मृतु दंड दिया जायेगा ...बेचारा दरजी दिन भर परेशान रहा  , न कुछ खा पाया, और न ही ठीक से सो पाया, ...सोचता रहा बनाना तो दूर अब तक सोच भी नहीं पाया की ऐसा क्या बनाऊ जो दुनिया मे किसी के पास न हो ?....धीरे धीरे सुबह हो गई , और राजा के दरबार से लोग दरजी को लेने आ गए , दरजी जल्दी से तैयार हो कर , पालकी मे बैठ कर राजा के दरबार पहुँच गया ....राजा बड़ी ही बेसब्री से अपनी पोशाक का इंतजार कर रहा था, तभी दरजी उसके पास पंहुचा और बोला कपडे उतारिये, मैं नई पोशाक पहनाता हूँ, राजा ने भरे दरबार मे कपडे उतार  दिए , और दरजी ने उसे " हवा" की बनी शेरवानी पहना दी ,  जो असल में कुछ थी ही नहीं , और बोला "जहाँपना आप इस पोशाक में बहुत ही सुन्दर दिख रहे है और ऐसी पोशाक किसी और के पास है भी नहीं " ....ये सुनकर राजा बहुत ही प्रसन हुआ और अपने दरबार की तरफ मुड़ा .....राजा को देख कर सब दंग रह गए, क्यूंकि राजा न सिर्फ नंगा था , बलिक तख्त नशी की मदहोशी व् अराजता की आंधी में खुद को निवस्त्र देख पाने की शक्ति भी खो चूका था ....क्यूंकि सच बोलने की सजा मौत थी इसलिए किसी ने राजा को कुछ नहीं बताया , और नंगा राजा पूरा दिन सारे राज्य में नंगा घूमता रहा...और कोई कुछ नहीं बोला .....शाम को अचानक एक बच्चे की नज़र उस निवस्त्र  राजा पे पड़ी , और वो जोर जोर से हंसने लगा , और बोला राजा नंगा है !!!!!!, और उस बच्चे की हंसी देख कर कुछ और लोग हंसने लगे .....राजा कुछ कहे बिना क्रोधित हो कर चला गया ...राजा की ख़ामोशी ने लोगो के दिलो मे हलचल पैदा कर दी ...और अगले ही दिन उस बच्चे समेत सारे  लोग एक घर में लगी आग मे जलकर मर गए ...जिसका एक मात्र कारण बताया गया , घर के चूल्हे से निकली चिंगारी ..इसके आगे न हीं किसी की कुछ कहने की हिम्मत हुई , न करने की.......मेरा सवाल ये है , क्या नंगे राजा को नंगा कहना अपराध था ?.....और रहस्य ये है की अलग अलग घरो मे रहने वाले लोग , एक ही घर में जलकर कैसे मरे ? ...ये जीती जागती तस्वीर है , हमारी प्रशाशन व्यवस्था की , जिसकी नग्नता बताने वाले किसी भी जन साधारण को कुचल दिया जाता है ........


संध्या ...

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

" ढोल , गंवार , शुद्र, पशु , नारी सकल ताडन के अधिकारी"

किसी काम में  देर होने से नाराज़ पति ने पत्नी को बड़े ही क्रोधित अंदाज में कहा , किसी ने बिलकुल सच कहा है , " ढोल , गंवार , शुद्र, पशु , नारी सकल ताडन के अधिकारी"...पत्नी ने मुस्कुराते हुए रोबीले स्वर में कहा , प्रिय पति देव , आपकी कही हुई पंक्तिया अगर सही मान भी ली जाए तो ये आपके लिए जादा उपयुक्त है , क्यूंकि मैं तो सिर्फ नारी हूँ, और बाकि सभी उपाधिया यानि  "ढोल" , "गंवार" , "शुद्र" ,पशु" आपके लिए है ....!!!!

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

मैं जिंदगी का साथ निभाती चली गई ..

बेफिक्र करके खुद को हर गम-ए-जहाँ से , मैं जी रही हूँ जिंदगी को इत्मिनान से ,
नाकामियों से ऐसे मुंह न मोड़िये हुजुर , गुजरेगी कामयाबी इसी पायदान से ....






सोमवार, 30 जनवरी 2012

मुफलिसी ..

                         
                        चेहरा बता रहा था , मारा है भूख ने ......वो हकीम कह रहा था कुछ खा के मरा है ....

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कभी कभी


कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता हैं
कि ज़िंदगी तेरी जुल्फों कि नर्म छांव मैं गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।

यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही जो दिल पे छाई हैं
तेरी नज़र कि शुओं मैं खो भी सकती थी।

मगर यह हो न सका और अब ये आलम हैं
कि तू नहीं, तेरा ग़म तेरी जुस्तजू भी नहीं।

गुज़र रही हैं कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इससे किसी के सहारे कि आरझु भी नहीं.

न कोई राह, न मंजिल, न रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों मैं ज़िंदगी मेरी.

इन्ही अंधेरों मैं रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हम-नफस, मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता है.


मेरी पसंदीदा पंक्तिया ....बच्चन साहब की बेहतरीन कविता...