एक पेड़ मिलकर प्यार का हमने लगाया था कभी ....
आते जो फल तो ठीक था ,वो न फले तो न सही......
कुछ न हुए तो न सही ,कुछ न बने तो न सही ....
न मिले तो न सही , कुछ न रहे तो न सही .....ये जिंदगी ...
हर एक रास्ते से हमने पुकारा तुझे सोचा संवारा तुझे ....
पर तुमको अच्छा न लगा कोई वादा सचा न लगा ....
तुम रूठे हो ये सोच कर तुमको मनाएंगे मगर ॥
अब हमसे रूठी तेरी ये नज़र ..............................
गर न हँसे तो न सही , न बने तो न सही ....
न मिले तो न सही.....न रहे तो न सही .........
तुम रास्ता मैं अजनबी ,लगता था क्यों ये हर घड़ी ,
आधे अधूरे गीत की ,एक तुम कड़ी एक मैं कड़ी ...
तुम रास्ता मैं अजनबी , लगता था क्यो ये हर घड़ी ,
तुम्हे देख के लगता था ये, तुम हो बने मेरे वास्ते ...
मिलना ही था हमको मगर हम न मिले तो न सही ....
ये जिंदगी ..........
यह रचना स्वरचित नही ....स्वचोरित है.......पर हम सभी की जिंदगी मैं कही न कही किसी न किसी पड़ाव पे खरी उतरती है......बस फर्क इतना है की हम स्वयं से सच्चाई बोलने में झिझकते है......अगर आपको लगता है की जिंदगी सदेव आपके लिए खट्टे नीबू जैसी रही है तो उसका नीबू पानी बना कर उसके हर एक घूंट का मज़ा लीजिये और हो सके तो उसमे थोड़ा नमक और मिला ले ताकि जिंदगी को भी उसकी खट्टास का एहसास हो जाए ....."खट्टी हो तो नमक लगा के ....."
बहुत कुछ बोलती रचना है ये
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