गुरुवार, 5 नवंबर 2009

संध्या ....

"मयखाने से शराब से साखी से जाम से अपनी तो जिंदगी शुरू होती है शाम से "......संध्या ....जो जैसे ही आती है, अपने सारे अरमानो को तारे बना कर सारे फलक मे बिखेर देती है ....और फ़िर बेचारी उषा को पुरी रात झाडू लगा लगा के आसमान साफ़ करना पड़ता है ताकि वो सूरज को फ़िर से आने के लिए मना सके ...या फ़िर यु कहूँ की संध्या अपने सारे पत्ते खोल देती इन तारो के रूप मे एक और बाजी हार जाने के लिए ....संध्या, जो हजारो करोडो वर्षो से तपते सूरज तक को अपने आगोश मे भर कर शीतलता से तृप्त कर देती है ....वही संध्या जाने किस प्रेम वश रात्रि से आलिंगन मे स्वयं का अस्तिव्य उसी रात मे विलीन कर देती है .....ये उसका प्रेम है ? या फ़िर कुदरत से किया उसका, कुदरत के कानून को न तोड़ने का वादा ? या वो जानती है या फ़िर उसका खुदा जानता है .....संध्या ...जो आपको आप से मिला देती है ....दिन भर की भागती जिंदगी मे भागते भागते थक जाने के बाद जब आप सब अपने अपने आशियाने की तरफ़ लौटेते है तो अनायास ही कही किसी बस स्टाप पे या फ़िर बस मे बैठे बैठे ही अचानक आप कही खो जाते हो .....अपने आप मे ही या फ़िर उसमे जो आपके सब से ज्यादा पास है ..सोचते है आप क्या है और क्या बनाना चाहते थे ? या फ़िर क्या बनाना चाहते है ?..सोचते है की काश आज उसकी सूरत देखने मिल जाए जो इस वक्त खुशबु की तरह आपके मन के महकाए हुए है.... और फ़िर आपकी मंजिल आ जाती है बस के झटके के साथ आप अपने स्वपन से जाग जाते है ....और जब तक आप घर पहुँचते है संध्या का आस्तित्व आपके सपने की तरह ही फीका पड़ चुका होता है ....पर ये संध्या कल फ़िर आएगी ..हर रोज़ आएगी जब तक दुनिया है तब तक .....और आपको जिंदगी का संदेश देने ....सदियों से ऐसे ही आती है.. रात मे लुप्त हो जाती है लेकिन फ़िर आती है , फ़िर आती है , फ़िर आती है .....और आपको कहती है " त्याग जीवन का आधार है ...पर तपते सूरज से समझौता जीवन और आस्तित्व दोनों के लिए प्रशन वाचक चिन्ह "......

11 टिप्‍पणियां:

  1. उषा पूरी रात कहाँ रहती, वहां तो निशा होती है ?तपते सूरज से समझौता ? वाह, क्या बात है , अच्छा प्रश्न व वक्तव्य है |

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  2. खुबसुरत पैमाना।
    आप का ब्लोग जगत मे स्वागत है

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  3. hmmmmm lagta haai bahut kuch seekha aapne life se .....boss ye hi to jindgi hai!!!sundar or bindas post ke liye badhai...likhte rahen swagat hai !!
    waise maine aapke bare mai pada such maniye jo likha bahut sahi likha lakin jindgi itni bhi chhalawa nahi hai .....so jiyo ji bharke !
    kuch alag soch hai aapki badhai ho ...or haa mere blog par swagat hai....asha hai kuch alag aapko milega!!
    till than ...Jai HO Mangalmay ho!!

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  4. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.......
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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
    करें

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  6. " bahut bahut accha likha hai aapne .aapka swagat hai "

    ----- eksacchai { AAWAZ }

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  7. jindgi ka ye ye sirf ek pahlu hai..jis tarah aap apne liye sochti hai usi tarah koi aur bhi sochta hai aap ke liye....achcha likha hai...par pura sach nhi hai...

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  8. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. yai kya ho gaya hai es ladki ko......
    this is you Sandhya.???..i cannot believe it.

    Mohan Rawat

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