गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

अस्तित्व ...एक पहचान

आज अभी थोड़ी देर पहले मैं अख़बार पढ़ रही थी , उसमे एक खबर कुछ इस तरह छपी है "Down To Earth" ...और उसके नीचे राहुल गाँधी का चित्र छपा है, कहीं रात्रि भोजन करते हुए ...और उसके नीचे लिखा है .."A SIMPLE LIFE - Rahul Gandhi has dinner with members of a dalit famliy, at their house in Gaowali villege of Jhansi district"...........ये "दलित" क्या है ? और समाज से कैसे भिन्न है ? किस आधार पे समाज को बांटा गया है ? दलितों को सबसे निम्न वर्ग में क्यों रखा गया है ? ऐसा भी तो किया जा सकता था कि उन्हें सबसे उच्च वर्ग में रखा जाता ....पर ऐसा नहीं है क्यों नहीं किसी को नहीं पता ...खैर थोडा और गहरे में जाया जाये तो पता चलेगा ये समाज का अछूत वर्ग है अब अछूत क्यों है ये बताती हूँ ....ये इसलिए अछूत है क्यूंकि अपना काम खुद करते है , दुसरो के यहाँ पे मजदूरी या दिहाड़ी पे काम कर लेते है ...एक रोटी कमाते है वाही रात को खाते है और सो जाते है ....गरीबी से झुझते है , बीमारियों से लड़ते है , छोटी छोटी ख्वाहिशे मन मे दबा लेते है , कम में गुज़ारा कर लेते है , इसलिए ये दलित है , अछूत है , सरकारी नौकरियों मे इन्हें नाम के लिए आरक्षण मिलता है , जो सही मायने मे किसी उच्च वर्ग का प्राणी खा जाता है ..नकली प्रमाण पत्र बनवा के .....उच्च वर्ग के लोग उच्च क्यों है अब ये सुनिए .....वो इस निम्न वर्ग के घर मे भोजन नहीं करते क्योकि निम्न वर्ग अछूत है , पर यदि कभी गलती से इसी निम्न वर्ग कि कोई जवान लड़की इनके हाथ लग जाए तो वो उसकी बोटी बोटी तक चबा जाये .......शारीरिक भूख को शांत करते समय निम्न वर्ग अछूत नहीं रह जाता शायद , दलित नहीं रहता..., सरकारी नौकरी लेने के लिए उच्च से उच्च वर्ग , दलित वर्ग मे शान से शामिल होने को तैयार रहता है ....दलितों को पैरो के नीचे रोंधने वाले बड़े बड़े नेता चुनाव के दौरान पहुच जाते है अपनी झोली लिए ........वोट मांगने .........मुझे समझ ये नहीं आता , कि दलितों मे ऐसा क्या है जो उन्हें समाज से अलग कर देता है , वो दिखने मे आम इन्सान है , सबकी तरह उसका रक्त भी लाल है , वो वैसे ही सोचा , जगता, उठता , बैठता , खाता ,पीता है , उसकी उतनी और वैसी ही ज़रूरते है जैसे उच्च वर्ग कि है ....तो फिर वो भिन्न कैसे ???????? किस ने बांटा है ये समाज ? और किस आधार पे ? मुझे लगता है भारत देश को इस मुद्दे पे फिर से विचार करना चाहिए ....जब इश्वर ने सबको एक जैसा बनाया है और वो कौन अपराधी है जिसने समाज के टुकड़े कर दिए है ......जब सबको समान अधिकार कि बात कही जाती है तो फिर समान समाज क्यों नहीं है ? यहाँ सवाल हर जबान पे है पर मैं जवाब कि तलाश मे हूँ ........मैं सोच बदलना चाहती हूँ ,नज़र बदलना चाहती हूँ और यकीं दिलाती हूँ जिस दिन ये नज़र बदली नज़ारे खुद बदल जायेगे ........मुश्किल नहीं है ये सफ़र एक तेरा साथ मिल जाये अगर .................हम चलते चलते बहुत दूर आ गए है अब वक्त है परिवर्तन का ....अब राजनीती को , देश को , समाज को परंपरा कि नहीं परिवर्तन कि ज़रूरत है .......आप सब का साथ चाहिए मुझे अपनी बात जादा से जादा लोगो तक पहुंचाने के लिए .......मैं किसी परंपरा के खिलाफ नहीं हूँ पर मैं उसके पीछे के तर्क शास्त्र , और नयाय शास्त्र को जानना चाहती हूँ .......

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