आज घर से अकेली निकल गई वो पूरे विश्वास के साथ ...जैसे जानती थी कि कहाँ जाना है और कहाँ उसका ठिकाना है ..छोटे से शहर हल्द्वानी की रहने वाली ,वो आज जा रही थी मन के सपनो के इन्द्रधनुष में रंग भरने ....आज महसूस कर रही थी कि वो अब तक गैरो में पल रही थी...उसका अपना तो वो है जिसे आज वो पहली बार मिलने जा रही है और वो भी मायानगरी मुंबई ...प्रेम में बहुत ताकत है इसका एहसास वो आज कर रही थी जो कभी अकेली शायद अपनी बालकनी तक नहीं गई थी आज एक अनजान डगर पे किसी को बिना बताये अकेले ही निकल गई...ना कोई डर , ना कोई फिकर .......दो दिन की जदोजिहद के बाद वो पहुंची मुंबई रेलवे स्टेशन जहाँ उसका इंतज़ार कर रहा था कोई , इसका विश्वास था उसे .....पर अचानक ही इन्द्रधनुष के रंग अमावस की रात की तरह काले पड़ गए क्युकी जिस एक नंबर के सहारे वो यहाँ तक चली आई वो नंबर "उपलब्ध नहीं है" की उदघोषणा हो रही थी उस नंबर को मिलाने पे.....उसे लगा जैसे शरीर में वायु प्रवाह रुक गया है....कहाँ जाये ? क्या करे ? किस से पूछे ? क्या पूछे और क्या बताये ? हाथ से बैग छुट गया और वो चमकीले कागज में लिपटा गिफ्ट भी जो वो भेंट करना चाहती थी उस अनजाने , अनदेखे शख्स को जो कुछ महीने पहले उसे फेस बुक पे मिला था ...और उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ चाहत का ...कितना समय और पैसा उसने सायबर केफे में लगाया , सिर्फ उस से बात करने के लिए ...फिर कुछ वक्त बीता तो उसे लगने लगा कि अब रात भी उस से बात किये बिना नहीं कटती , और अगली ही सुबह उसने फ़ोन नंबर ले लिया ताकी बात करने पे कोई पाबन्दी न लग पाए ...और आज उसी फ़ोन नंबर की बदौतल वो यहाँ खड़ी थी अपने घर से हजारो किलोमीटर दूर ...कुछ और कर पाने की हिम्मत तो नहीं बची थी तो घर लौटने की एक टिकट लेकर फिर से बैठ गई ट्रेन में .....पांच दिन घर से बिना बताये लापता रहने वाली लड़की किसी को स्वीकृत नहीं होती चाहे फिर वो उसके माँ बाप ही क्यों ना हो ....रात के गहन अंधकार में वो जैसे ही घर के आँगन में पहुची , माँ ने एक स्वर में कह डाला " जहाँ गई थी व्ही लौट जा क्युकी मैं अगर अब तुझे इस घर में पनाह दूंगी तो तेरी उन चारो बहनों का जीवन तेरे किये की वजह से बर्बाद हो जायेगा" ..................................बस अब ना तो कुछ कहने को बचा था और ना ही कुछ सुन ने को.....बचा था कुछ , तो एक ऐसा चेहरा जिसकी कोई पहचान नहीं थी...
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