मैं एक अविवाहित लड़की हूँ , और जल्द ही इस अटूट और जन्मो जन्म के कहे जाने वाले रिश्ते में बंधने जा रही हूँ !! पहले तो कभी इन चीजो पर इतना ध्यान गया ही नहीं क्यूंकि शायद कभी उस बारे में बहुत गहन विचार नहीं किया ...पर जब से रिश्ते की बात हुई तब से कुछ विचार पनप रहे है मन में ,तो सोचा आप सभी के साथ बाँट दूँ ...मेरे आसपास बहुत सारे लोग शादी शुदा है और लडकिया जो की शादी शुदा है उन सभी की कुछ कॉमन समस्याए है , जो शायद मेरी भी होगी ..शादी के बाद साडी पहनना , क्या जरुरी है ? क्या सूट और जींस पहनने से किसी खानदान की इज्जत ख़राब हो जाती है ? मुझे लगता है आजकल साडी को सूट और जींस से जादा कामुक लहजे में पहना जा सकता है ....और लोग पहनते है तो कहाँ से वो सभ्यता का प्रतीक है ?और ऐसे कपडे जो मेरे लिए सुविधापूर्ण नहीं है , उन्हें पहन के मैं कैसे अपनी सभ्यता का डंका पीट सकती हु ? एक और प्रथा है , पर्दा या घूँघट !! क्या किसी से घूँघट करना या पर्दा करना , इस बात का सबूत है कि कोई किसी कि इज्जत करता है , उसका सम्मान करता है ,उसकी इज्जत करता है ? स्त्री के आभूषण कहे जाने वाली हया और शर्म सिर्फ आँखों में काजल की संकरी धार की तरह होते है , जो जरा गहरी हो जाए तो चेहरा काला और भद्दा लगने लगता है ..मैं अगर एक गज का घूँघट निकाल कर भी किसी को अपनी जबान से भला - बुरा कहती रहूँ या गाली देती रहूँ तो ऐसे घूँघट को करने से क्या फायदा ? हाँ अगर मैं किसी की इज्जत करती हूँ तो मेरे कुछ भी पहनने से उस श्रधा या भावना पे कोई फर्क नहीं पड़ता..अगर मेरा सर किसी के समक्ष अदब से झुकता है तो उसका मेरे पहनावे से या घूँघट करने न करने से कोई फर्क नहीं पड़ता.....एक और बात , जिसका रोना आमतोर पर लड़के की माँ या आसपडोस के लोग रोते रहते है , वो है चूड़ी पहनना / बिंदी लगाना / बिछु पहनना / सिंदूर लगाना इत्यादि , जिसकी सार्थकता अगर पूछी जाए सिवा इसके कुछ नहीं मिलता कि ये सब सुहागन होने कि निशानी है , अब मेरा सवाल ये है क्या ऐसी कोई निशानी लड़के के हिस्से दी गई है ? लोगो से सुना है कि सिंदूर के धार जितनी लम्बी हो पति कि उम्र उतनी लम्बी होती है , क्या मेरा सिंदूर पहनना किसी के जीवन क़ी अवधी या उसकी नियति बदल सकता है ? और अगर नहीं बदल सकता तो क्यों ये सब चीजे शादी के बाद एक लड़की पे जबरदस्ती लाद दी जाती है ? और अगर बदल सकता है तो मेरा जीवन भी उतना ही कीमती है जितना क़ी मेरे पति का , तो मेरे पति को भी उन सभी चीजो का पालन वैसे करना होगा जैसे मुझसे कराया जायेगा..ये सब एक साज श्रृंगार के प्रसाधन है जो किसी खास मौके या मूड के लिए बने है ...कल ही किसी को कहते सुना "मैडम जी आपकी तो शादी हो गई , अब आप करछी चलाओ कहाँ ये कीबोर्ड पर उंगलिया चला रही हो" ? कहने का अर्थ ये क़ी शादी के बाद लड़की अपना करियर , अपने सपने , अपने अपने सब छोड़ दे ? और अपनी पति क़ी आमदनी को ही अपना नसीब समझ ले जबकि वो खुद काम करके एक अच्छा जीवन यापन कर सकती है ? ....अब है " पैर छुआई क़ी रसम" एक हद तक बड़ो के पैर छूना तो मुझे समझ आता है , पर पति के पैर छूना या फिर छोटी नन्द के पैर छूना कितना उचित है ? छोटी नन्द सिर्फ इसलिए बड़ी है क़ी वो मेरे पति परमेश्वर क़ी बहन है ? तो फिर मेरी भी छोटी बहन उतनी है सम्मान क़ी हक़दार है क़ी मेरे पति उसके पैर छुए .....यही बात मेरे पति देव पर भी लागू होती है , मैं उन्ही के सामान एक आम इन्सान हूँ , जो अगर सिर्फ एक गृहस्त जीवन भी व्यतीत कर रही हूँ तो भी उतने ही सम्मान क़ी हक़दार हूँ क्यूंकि अगर वो घर चलाने के लिए पैसे कमाते है तो मैं उनकी आमदनी के अनुसार अपने घर को चलाती हूँ और सभी क़ी सेवा करती हूँ , और अगर मैं सिर्फ एक गृहस्त जीवन नहीं जीती और बाहर काम करती हूँ तो मेरा सामान और भी बढ़ जाता है क्यूंकि मैं बाहर के साथ घर का भी काम करती हूँ ....क्या ऐसा नहीं हो सकता क़ी एक लड़की को समान अधिकार दे कर , उसके जीवन से उसकी आज़ादी न छीन कर , उसके लिए भी ये विवाह " शुभ विवाह" बना दिया जाए ? मेरा विवाह कितना शुभ होगा ये तो मैं अपने पहली ससुराल यात्रा के बाद ही बता पाऊँगी ....तब तक आप मेरे प्रश्नों पर विचार करे और बताये क़ी शर्म / हया / प्यार / तप / तपस्या / समझोता/ इज्जत / मान / मर्यादा / सम्मान इन सब क़ी गठरी लड़की के सर शादी के नाम पर लाद देना कितना उचित है ?
ऐसा जरुरी नही है कि शादी के बाद ये सब तमाशे किए जाए।..मन में इज्जत रहना जरुरी है बस। रिश्ता दिखावे से नही होता मन से मानने से होता है...और जो बेवकूफ की-बोर्ड छोडके कलछी चलाने की बात कह रहा था उसे खुद के दिमाग को थोडा मेच्योर करने की जरुरत है।
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